।। श्रीहरिः ।।

पञ्चामृत-२


(गत् ब्लॉगसे आगेका)
केवल भोजन ही नहीं, गहना पहनें तो ठाकुरजीको अर्पण करके । ठाकुरजीका ही कपड़ा पहनें । सब चीजें प्रसादरूपमें ग्रहण करें तो सब चीजें पवित्र हो जाती हैं । आपने देखा है कि नहीं, ठाकुरजीके प्रसाद लगावें और वह बाँटें तो हरेक आदमी हाथ पसारेगा । छोटे-से-छोटा कणका दो तो वह राजी हो जायगा । लखपति हो चाहे करोड़पति हो, आपके सामने हाथ पसारेगा और प्रसादका आप छोटा-सा कणका दे दें, वह राजी हो जायगा । वह क्या मीठेका भूखा है ?

कोई लखपति, करोड़पति आपसे प्रसाद माँगे और अगर उसे आप कहें कि चलो बाजारमें मीठा दिलाऊँ आपको । तो वह नाराज हो जायगा । वह धनी आदमी कहेगा कि मिठाईका भूखा हूँ क्या मैं ? हमें प्रसाद चाहिये । प्रसादका कितना महत्त्व है बताओ ? ठाकुरजीका प्रसाद है । घरमें सब चीजें ठाकुरजीकी हैं ।

आप करें तो एक बात बतावें बहुत बढ़िया ! कृपा करके कर लें तो बहुत बढ़िया और फायदेकी बात है । घरमें जितना धन पड़ा है सबपर तुलसीदल रख दो । जितने गहने, कपड़े हैं सबपर तुलसीदल रख दो । घरपर भी धर दो । जितने भी गाय, भेड़, बकरी हैं, उनपर तुलसीदल रख दो । छोरा-छोरीपर भी धर दो । किनके बालक हैं ? ठाकुरजीके बालक हैं ।

एक चमत्कार है । आप कर सको तो बतावें, पर हृदयसे करो, जब होवे । छोरा उद्दण्ड है और कहना मानता नहीं । सच्चे हृदयसे अपनी ममता उठा लो कि मेरा है ही नहीं । केवल ठाकुरजीका ही है । छोरा बिलकुल सुधार जायगा । जैसे ठाकुरजीके भोग लगानेसे चीजें पवित्र हो जाती हैं । बड़े-बड़े पुरुष आदर करते हैं । ऐसे सच्चे हृदयसे अपनी ममता बिलकुल मिटाकर, केवल ठाकुरजीका मान लें तो वह शुद्ध हो जायगा, पवित्र हो जायगा । ऐसी बात करके देखो । शर्त यह है कि अपनी ममता बिलकुल उठा लें । जैसे मुसलमानोंका छोरा है, ऐसा ही यह छोरा है । मर जाय तो कोई असर नहीं हमारेपर । हमारा छोरा नहीं है अब मरा तो ठाकुरजीका । जब कि ठाकुरजीका मरता नहीं । यहाँ मर गया तो वहाँ जन्मा । ठाकुरजीसे बाहर होता ही नहीं । ऐसा करनेसे छोरा पवित्र हो जायगा । एकदम बात ठीक है । ममता ही मलिनता है । इसके कारण ही मलिन होता है । दान-पुण्य करते हैं तो इनके साथ अपना कोई सम्बन्ध नहीं मानें । “दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे” । (गीता १७/२०) ‘अनुपकारीणे’ का अर्थ यह नहीं कि कोई उपकार न कर दे हमारा । मानो पहले उपकार किया नहीं और आगे भी आशा नहीं है । ऐसेको दिया जाय, जिनसे अपना स्वार्थका सम्बन्ध न हो उनको दो चाहे घरवालोंके साथ स्वार्थका सम्बन्ध न रखो । एक ही बात रहेगी । टोटल एक हो आयेगा । चाहे तो अपनापन न हो, वहाँ सेवा करो अथवा जहाँ सेवा करो वहाँ अपनापन मिटा दो—एक ही बात होगी ।

भगवान्‌के हैं हम । भगवान्‌के दरबारमें रहते हैं । भगवान्‌का ही काम करते हैं । भगवान्‌के प्रसादसे भगवान्‌के जनोंकी सेवा करते हैं । मैं भी भगवान्‌का ही प्रसाद पाता हूँ—यह पञ्चामृत है असली । आजसे इस बातको पकड़ लो । “सर्वभावेन मां भजति” और सब भावोंसे भगवान्‌का ही भजन करें, तो भाव रखें कि ठाकुरजीका शरीर हैं । ठाकुरजीका काम करता हूँ मैं । तो ठाकुरजीपर एहसान कर सकते हैं कि महाराज ! आपका काम करता हूँ ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)


—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे