।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.–२०६९, रविवार
रंगपंचमी
विनाशीका आकर्षण कैसे मिटे ?


(गत ब्लॉगसे आगेका)
       इतना तो ख्याल करो आप ! आज जन्मे तब, जितना जीना था, उस समय जितनी उमर थी, अभी उतनी उमर बाकी है क्या ? तो उमर घट रही है न ! जीना मरनेमें जा रहा है न, संयोग मिट रहा है न ! पहले शरीर नहीं था, फिर शरीर नहीं रहेगा । वर्तमान अवस्थामें शरीर है, इस समय भी इससे प्रतिक्षण वियोग हो रहा है । यह बात तो समझमें आती है न, आकर्षण मत छूटे भले ही, पर इस बातको समझो आप, कि प्रतिक्षण शरीरके साथ वियोग हो रहा है । यह विवेक जितना दृढ़ होगा, उतना ही इसके छूटनेमें सहायता मिलेगी । जो सदा साथमें नहीं रहता, उसके साथ क्या मोह करें, ये हमारे साथ रह नहीं सकते, इसमें कोई सन्देह है क्या ? तो आप छूटता नहीं, इसकी चिन्ता मत करो, पर इस बातपर जोर दो कि वास्तवमें इनके साथ हम नहीं हैं और हमारे साथ ये नहीं हैं । जड़ कट गयी इस सम्बन्धकी, इतनी बात होते ही । इनका सम्बन्ध जो आज दृढ़ दीखता है और आज आप कहते हो कि यह छूटता नहीं है । इसकी जड़ कट गयी आज । इसपर दृढ़ रहो कि ये हमारे साथ हरदम रहनेवाले नहीं हैं । तो इनकी ममता छोड़नेमें क्या जोर आता है ?
 
      श्रोता‒इसपर दृढ़ कैसे रहें ?
      स्वामीजी‒इसका चिन्तन करके, इसपर विचार करके इसपर दृढ़ रहो कि बात यही सच्ची है । इनके साथ हम हरदम नहीं रहते । १. पहले नहीं थे, २. पीछे नहीं रहेंगे और ३. वर्तमान अवस्थामें भी नहीं रह रहें हैं, यह तीन बात है । इसमें सन्देह नहीं है, तो इस बातका आदर करो, इस बातको महत्त्व दो । जैसे आजकल अगर १० रुपये भी मिल जायँ तो उसका आदर होता है, १०० मिल जायँ तो उनका आदर होता है, पर यह बात लाखों और करोड़ों रुपये देनेपर भी नहीं मिल सकती । क्या रुपयोंके बलपर यह बात मिल सकती है ? हाँ, कोई पण्डित बता देगा, पढ़ा देगा; परन्तु ठीक तरहसे यह बात रुपयोंके बलपर नहीं मिलती । कितने ही रुपये मिल जायँ तो भी रुपयोंसे सन्तोष नहीं होता, शान्ति नहीं मिलती और इस बातको ठीक तरहसे समझनेसे शान्ति मिलती है । अगर कुछ नहीं मिलता तो इतनी जल्दी इतने आदमी यहाँ जंगलमें क्यों आते हैं ? इससे सिद्ध होता है कि कुछ-न-कुछ मिलता है । यह बहुत विचित्र ढंगकी बात है । इस बातका आदर कम करते हैं, इस बातको महत्त्व नहीं देते हो, यहाँ गलती होती है ।

      श्रोता‒यह गलती कैसे मिटे ?
     स्वामीजी‒आजसे ही इस बातको महत्त्व दो कि यह बात वास्तविक है और वर्तमानमें लाभ दीखता है । क्या लाभ दीखता है कि पहले कोई चीज खो जाती थी तो कितनी चिन्ता होती थी ? और आज वैसी चीज खो जाय तो कितनी चिन्ता होती है ? इसमें नाप करोगे तो मेरी समझमें आपको फर्क मालूम देगा । फर्क पड़ा है तो इतना छूटा है न ! तो छूटेगा नहीं यह कैसे कहते हो ! पहले पकड़में जितनी दृढ़ता थी, उतनी दृढ़ता है क्या आज ? तो छूट रही है न ! सर्वथा नहीं छूटा, यह बात भी ठीक है । इसमें सन्तोष मत करो; परन्तु छूटता नहीं है, यह कैसे मानते हो ? आपसे छूटता नहीं है, यह बात मत मानो और सर्वथा छूट गया, यह बात भी मत मानो, क्योंकि सर्वथा छूटा नहीं है; परन्तु छूट तो रहा है ।
 
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे

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