।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल पंचमी, वि.सं.२०७१, सोमवार
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

          इसी तरह भगवान्‌ने नारदजीके मनकी बात नहीं होने दी तो उन्होंने भगवान्‌को ही शाप दे दिया । छोटे बालक ही तो ठहरे ! काट गये । फिर भी माँ प्यार करती है और थप्पड़ भी देती है तो प्यारभरे हाथसे देती है । माँ गुस्सा नहीं करती है कि काटता क्यों है ! ऐसे ही पहले नारदजीने शाप तो दे दिया; परंतु फिर पश्चात्ताप करके बोले‒प्रभु ! मेरा शाप व्यर्थ हो जाय । मेरी गलती हुई, मुझे माफ कर दो ।’ भगवान्‌ने कहा‒मम इच्छा कह दीनदयाला’मेरी ऐसी ही इच्छा थी । भगवान् इस प्रकार कृपा करते हैं ।

पम्पा सरोवरपर भगवान्‌की वाणी सुनकर नारदजीको लगा कि भगवान् प्रसन्न हैं । अभी मौका है । तब बोले किमुझे एक वर दीजिये ।’ भगवान् बोले‒कहो भाई ! क्या वरदान चाहते हो?’ नारदजीने कहा‒
राम  सकल   नामन्हते  अधिका ।
होउ नाथ अध खग गन बधिका ॥
                                  (मानस, अरण्यकाण्ड, ४२ । ८)
आपका जो नाम है, वह सब नामोंसे अधिक हो जाय और बधिकके समान पापरूपी पक्षियोंका नाश करनेवाला हो जाय । भगवान्‌के हजारों नाम हैं, उन नामोंकी गणना नहीं की जा सकती । हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता’ (मानस, बालकाण्ड १४० । ५) भगवान् अनन्त हैं, भगवान्‌की कथा अनन्त है तो भगवान्‌के नाम सान्त (सीमित) कैसे हो जायँगे ?

राम अनंत अनंत गुनानी ।
जन्म कर्म अनंत नामानी ॥
                            (मानस, उत्तरकाण्ड, दोहा ५२ । ३)

विष्णुसहस्रनाममें आया है‒

यानि नामानि गौणानि विख्यातानि महात्मनः ।

          भगवान्‌के गुण आदिको लेकर कई नाम आये हैं । उनका जप किया जाय तो भगवान्‌के गुण, प्रभाव, तत्त्व, लीला आदि याद आयेंगे । भगवान्‌के नामोंसे भगवान्‌के चरित्र याद आते हैं । भगवान्‌के चरित्र अनन्त हैं । उन चरित्रोंको लेकर नाम भी अनन्त होंगे । गुणोंको लेकर जो नाम हैं, वे भी अनन्त होंगे । अनन्त नामोंमें सबसे मुख्य रामनाम है । वह खास भगवान्‌का रामनाम हमें मिल गया तो समझना चाहिये कि बहुत बड़ा काम हो गया ।

शिव-पार्वतीका नाम-प्रेम

हरषे   हेतु   हेरि  हर  ही  को ।
किय भूषन तिय भूषन ती को ॥
                                                 (मानस, बालकाण्ड, दोहा १९ । ७)

            ‘राम’ नामके प्रति पार्वतीजीके हृदयकी ऐसी प्रीति देखकर भगवान् शंकर हर्षित हो गये और उन्होंने स्त्रियोंमें भूषणरूप (पतिव्रत्ताओंमें शिरोमणि) पार्वतीजीको अपना भूषण बना लिया अर्थात् उन्हें अपने अंगमें धारण करके अर्धांगिनी बना लिया । किसी स्त्रीकी बड़ाई की जाय तो उसे ‘सती’ की उपमा देकर कहा जाता है कि यह बड़ी सती-साध्वी है । परन्तु ‘राम’ नाममें हृदयकी प्रीति होनेसे वे पतिव्रताओंमें शिरोमणि हो गयीं । जितनी कन्याएँ हैं, वे सब-की-सब सती (पार्वती) जीका पूजन करती है कि जिससे हमें अच्छा वर मिले, अच्छा घर मिले, हम सुखी हो जायँ ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे