।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
   आश्विन कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.-२०७४,मंगलवार
चतुर्दशी, अमावस्या-श्राद्ध, पितृविसर्जन
कल्याणकी प्राप्तिमें अपनी लगन कारण



    (गत ब्लॉगसे आगेका)

अगर आप अपना उद्धार चाहते हैं तो उसमें बाधा कौन दे सकता है ? और अगर आप अपना उद्धार नहीं चाहते तो आपका उद्धार कौन कर सकता है ? कितने ही अच्छे गुरु हों, सन्त हों, पर आपकी इच्छाके बिना कोई आपका उद्धार नहीं कर सकता । अगर आप अपने उद्धारके लिये तैयार हो जाओ तो सन्त-महात्मा ही नहीं, चोर-डाकू भी आपकी सहायता करेंगे, दुष्ट भी आपकी सेवा करेंगे, सिंह, सर्प आदि भी आपकी सेवा करेंगे ! इतना ही नहीं, दुनियामात्र भी आपकी सेवा करनेवाली हो जायगी । मैंने ऐसा कई बार देखा है कि अगर सच्चे हृदयसे भगवान्‌में लगे हुए व्यक्तिको कोई दुःख देता है तो वह दुःख भी उसकी उन्नतिमें सहायक हो जाता है ! दूसरा तो उसको दुःख देनेकी नियतसे काम करता है, पर उसका भला हो जाता है ! इतना ही नहीं, जो भगवान्‌को नहीं मानता, उसमें भी अगर अपने कल्याणकी लगन पैदा हो जाय तो उसका भी कल्याण हो जाता है ।

धनी आदमी काम करनेके लिये नौकर रख लेते हैं, पूजन करनेके लिये ब्राह्मण रख लेते हैं, पर भोजन करने अथवा दवा लेनेके लिये कोई नौकर या ब्राह्मण नहीं रखता । भूख लगनेपर भोजन खुदको ही करना पड़ता है । रोगी होनेपर दवा खुदको ही लेनी पड़ती है । जब रोटी भी खुद खानेसे भूख मिटती है, दवा भी खुद लेनेसे रोग मिटता है, तो फिर कल्याण अपनी लगनके बिना कैसे हो जायगा ? आप तत्परतासे भगवान्‌में लग जाओ तो गुरु, सन्त, भगवान्‌‒ सब आपकी सहायता करनेके लिये तैयार हैं, पर कल्याण तो खुदको ही करना पड़ेगा । इसलिये गुरु हमारा कल्याण कर देगा‒ यह पूरी ठगाई है !

माँ कितनी ही दयालु क्यों न हो, पर आपकी भूख नहीं हो तो भोजन कैसे करायेगी ? ऐसे ही आपमें अपने कल्याणकी उत्कण्ठा न हो तो भगवान्‌ परम दयालु होते हुए भी क्या करेंगे ? चीर-हरणके समय द्रौपदीने भगवान्‌को पुकारा तो वे वस्त्ररूपसे प्रकट हो गये, पर जुएमें हारते समय युधिष्ठिरने भगवान्‌को पुकारा ही नहीं तो वे कैसे आयें ? युधिष्ठिरने तेरह वर्षोंतक वनमें दुःख पाया । कुन्ती माताने भगवान्‌ श्रीकृष्णसे कहा कि ‘कन्हैया ! क्या तेरेको पाण्डवोंपर दया नहीं आती ?’ भगवान्‌ने कहा कि ‘मैं क्या करूँ, युधिष्ठिरने जुएमें राज्य, धन-सम्पत्ति आदि सब कुछ लगा दिया, पर मेरेको याद ही नहीं किया !’

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

  ‒ ‘क्या गुरु बिना मुक्ति नहीं ?’ पुस्तकसे