।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
 मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी, वि.सं.-२०७४,शुक्रवार
                        श्रीस्कन्द-षष्ठी
     भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय



भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

१.   भगवत्प्राप्तिकी सच्ची लगन होना

(१)

परमात्मतत्त्वकी प्राप्तिके समान सुगम और जल्दी सिद्ध होनेवाला कार्य कोई है नहीं, था नहीं, होगा नहीं और हो सकता नहीं ! परिश्रम और देरी तो उस वस्तुकी प्राप्तिमें लगती है, जो है नहीं, प्रत्युत बनायी जाय । जो स्वतः-स्वाभाविक विद्यमान है, उसकी प्राप्तिमें परिश्रम और देरी कैसी ? जैसे, गंगाजीको पृथ्वीपर लानेमें बहुत जोर पड़ा और अनेक पीढ़ियाँ खत्म हो गयीं, पर अब ‘गंगाजी हैं’ऐसा जाननेमें क्या जोर पड़ता है ? परन्तु स्वयंकी भूख, लगन न हो तो यह सुगमता किस कामकी ? अगर स्वयंकी लगन हो तो सब-के-सब मनुष्य सुगमतापूर्वक और तत्काल जीवन्मुक्त हो सकते हैं !

(२)

सम्पूर्ण देश, काल, क्रिया, वस्तु व्यक्ति, अवस्था, परिस्थिति, घटना आदिका अभाव होनेपर भी जो शेष रहता है, वही परमात्मतत्त्व है । उस तत्त्वका अभाव कभी हुआ नहीं, है नहीं, होगा नहीं और हो सकता नहीं । उस तत्त्वमें हमारी स्थिति स्वतः है । इसलिये वह तत्त्व हमारेसे अलग नहीं है और हम उससे अलग नहीं हैं । वह हमारेसे दूर नहीं है और हम उससे दूर नहीं हैं । वह हमारेसे रहित नहीं है और हम उससे रहित नहीं हैं । वह हमारा त्याग नहीं कर सकता और हम उसका त्याग नहीं कर सकते । वही तत्त्व सबका प्रकाशक, सबका आधार, सबका आश्रय, सबका रक्षक, सबका उत्पादक, सबका ज्ञाता, प्रेमास्पद, अन्तरात्मा, आत्मदृक्, विश्वात्मा आदि अनेक नामोंसे कहा जाता है । उस नित्यप्राप्त तत्त्वका अनुभव करनेमें कोई भी मनुष्य असमर्थ, पराधीन, अनधिकारी नहीं है । वह तत्त्व केवल उत्कट अभिलाषामात्रसे प्राप्त हो जाता है ।

(३)

परमात्माकी प्राप्तिका उपाय है‒असली भीतरकी लगन । जैसे प्यास लगे तो जल याद आता है, भूख लगे तो अन्न याद आता है, ऐसे भगवान्‌की याद आये । आप पापी, दुराचारी कैसे ही हों, एक भगवान्‌की लगन लग जाय तो सब ठीक हो जायगा । एक भगवान्‌के सिवाय कोई चाहना न हो तो भगवान् मिल जायँगे । कारण कि मनुष्यशरीरका प्रयोजन ही भगवान्‌को प्राप्त करना है । सब काम करते हुए भी भीतर लगन भगवान्‌की ही रहे ।

हाथ काम मुख राम है,  हिरदै  साची प्रीत ।
दरिया गृहस्थी साध की, याही उत्तम रीत ॥

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे