भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय
१.
भगवत्प्राप्तिकी सच्ची लगन होना
(१)
परमात्मतत्त्वकी प्राप्तिके समान सुगम और जल्दी सिद्ध
होनेवाला कार्य कोई है नहीं, था नहीं, होगा
नहीं और हो सकता नहीं ! परिश्रम
और देरी तो उस वस्तुकी प्राप्तिमें लगती है,
जो है नहीं, प्रत्युत बनायी जाय । जो स्वतः-स्वाभाविक विद्यमान है,
उसकी प्राप्तिमें परिश्रम और देरी कैसी ?
जैसे, गंगाजीको पृथ्वीपर लानेमें बहुत जोर पड़ा और अनेक पीढ़ियाँ खत्म
हो गयीं, पर अब ‘गंगाजी हैं’‒ऐसा जाननेमें क्या जोर पड़ता है ?
परन्तु स्वयंकी भूख, लगन
न हो तो यह सुगमता किस कामकी ? अगर स्वयंकी लगन हो तो सब-के-सब मनुष्य सुगमतापूर्वक और तत्काल
जीवन्मुक्त हो सकते हैं !
(२)
सम्पूर्ण देश, काल, क्रिया, वस्तु व्यक्ति, अवस्था, परिस्थिति, घटना आदिका अभाव होनेपर भी जो शेष रहता है,
वही परमात्मतत्त्व है । उस तत्त्वका अभाव कभी हुआ नहीं,
है नहीं, होगा नहीं और हो सकता नहीं । उस तत्त्वमें हमारी स्थिति स्वतः
है । इसलिये वह तत्त्व हमारेसे अलग नहीं है और हम उससे अलग नहीं हैं । वह हमारेसे दूर
नहीं है और हम उससे दूर नहीं हैं । वह हमारेसे रहित नहीं है और हम उससे रहित नहीं हैं
। वह हमारा त्याग नहीं कर सकता और हम उसका त्याग नहीं कर सकते । वही तत्त्व सबका प्रकाशक,
सबका आधार, सबका आश्रय, सबका रक्षक, सबका उत्पादक, सबका ज्ञाता, प्रेमास्पद, अन्तरात्मा, आत्मदृक्, विश्वात्मा आदि अनेक नामोंसे कहा जाता है । उस नित्यप्राप्त
तत्त्वका अनुभव करनेमें कोई भी मनुष्य असमर्थ,
पराधीन, अनधिकारी नहीं है । वह तत्त्व केवल
उत्कट अभिलाषामात्रसे प्राप्त हो जाता है ।
(३)
परमात्माकी प्राप्तिका उपाय है‒असली भीतरकी लगन । जैसे प्यास लगे तो जल याद आता है,
भूख लगे तो अन्न याद आता है,
ऐसे भगवान्की याद आये । आप पापी,
दुराचारी कैसे ही हों,
एक भगवान्की लगन लग जाय तो सब ठीक हो जायगा । एक भगवान्के सिवाय कोई चाहना न हो
तो भगवान् मिल जायँगे । कारण कि मनुष्यशरीरका
प्रयोजन ही भगवान्को प्राप्त करना है । सब काम करते हुए भी भीतर लगन भगवान्की ही
रहे ।
हाथ काम मुख राम है, हिरदै साची प्रीत ।
दरिया गृहस्थी साध की, याही
उत्तम रीत ॥
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे
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