।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     पौष कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.-२०७४, शनिवार
  भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय


भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

(गत ब्लॉगसे आगेका)

७. भगवान्‌को पुकारना तथा प्रार्थना करना

(१)

वे तो हरदम मिलनेके लिये तैयार हैं ! जो उनको चाहता है, उसको वे नहीं मिलेंगे तो फिर किसको मिलेंगे ? इसलिये हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ कहते हुए सच्चे हृदयसे उनको पुकारो ।

सच्चे  हृदयसे  प्रार्थना  जब  भक्त  सच्चा  गाय  है ।
तो भक्तवत्सल कान में वह पहुँच झट ही जाय है ॥

भक्त सच्चे हृदयसे प्रार्थना करता है तो भगवान्‌को आना ही पड़ता है । किसीकी ताकत नहीं जो भगवान्‌को रोक दे ।

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यद्यपि भीतरमें राग-द्वेष, काम-क्रोध, मोह आदि वृत्तियाँ रहनेके कारण सच्ची प्रार्थना होती नहीं, फिर भी बार-बार प्रार्थना करते रहो । जैसे मोटरको स्टार्ट करते समय बार-बार चाबी घुमाते-घुमाते कभी एक ही चाबीसे मोटर स्टार्ट हो जाती है, ऐसे ही प्रार्थना करते-करते कभी हृदयसे सच्ची प्रार्थना निकलेगी तो एक ही पुकारसे काम हो जायगा ।

(३)

भगवान्‌के बड़ी भारी पोल है, पता नहीं है आपको ! अब याद कर लो । सच्चे हृदयसे पुकारो हे नाथ ! हे नाथ !!’ ‘ना..... थ’ ‒ ‘थ’ कहते ही वे आ जायँगे !!

(४)

सुबह नींद खुलनेसे लेकर रात्रि नींद आनेतक चार-चार, पाँच-पाँच मिनटके बाद कहते रहो कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । भगवान् सुलभतासे प्राप्त हो जायँगे । आप करके देखो । वृत्ति अच्छी हो या बुरी, भगवान्‌को भूलो मत । आप हे मेरे नाथ ! हे मेरे प्रभो !’ पुकारो; आपका कल्याण होगा....होगा.....होगा ! नहीं हो तो मेरेको दण्ड देना !

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आपको अबतक भगवान्‌का जैसा स्वरूप समझमें आया है, उसको हर समय याद करो । भगवान् उसीको अपना स्वरूप मान लेते हैं, यह उनका कायदा है । हे मेरे नाथ ! हे मेरे प्रभो !’ पुकारो । भगवान् सबके लिये सुलभ हैं । योग्य हों, अयोग्य हों, सदाचारी हों, दुराचारी हों, भले हों, बुरे हों, हरेक भाई-बहन भगवान्‌को अपना कह सकते हैं । कोई भगवान्‌को पुकारता है तो उसके अवगुणोंकी तरफ भगवान्‌की दृष्टि जाती ही नहीं, वे तो केवल उसकी पुकारको देखते हैं ।

(६)


भगवान्‌के चरणोंकी शरण होकर केवल हे नाथ ! हे मेरे नाथ !!’ कह दो । पाँच मिनटसे ज्यादा देरी न हो । अगर यह भी न कर सको तो दस मिनटमें कह दो । दस मिनटसे ज्यादा हो जाय तो एक समय उपवास करो । नींद आ जाय तो जब जागो, तब कह दो कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । मन लगे चाहे न लगे, कहना मत छोड़ो । करके देखो कि लाभ होता है कि नहीं होता ! भगवान्‌के सामने की हुई प्रार्थना निरर्थक नहीं जाती ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे