भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय
(गत ब्लॉगसे आगेका)
७. भगवान्को पुकारना तथा प्रार्थना करना
(१)
वे तो हरदम मिलनेके लिये तैयार हैं ! जो उनको चाहता है,
उसको वे नहीं मिलेंगे तो फिर किसको मिलेंगे
? इसलिये ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’
कहते हुए सच्चे हृदयसे उनको पुकारो ।
सच्चे हृदयसे प्रार्थना जब भक्त
सच्चा गाय है ।
तो भक्तवत्सल कान में वह पहुँच झट ही जाय है ॥
भक्त सच्चे हृदयसे प्रार्थना करता है तो भगवान्को
आना ही पड़ता है । किसीकी ताकत नहीं जो भगवान्को रोक दे ।
(२)
यद्यपि भीतरमें राग-द्वेष,
काम-क्रोध, मोह आदि वृत्तियाँ रहनेके कारण सच्ची प्रार्थना होती नहीं,
फिर भी बार-बार प्रार्थना करते रहो । जैसे मोटरको स्टार्ट करते
समय बार-बार चाबी घुमाते-घुमाते कभी एक ही चाबीसे मोटर स्टार्ट हो जाती है,
ऐसे ही प्रार्थना करते-करते कभी हृदयसे
सच्ची प्रार्थना निकलेगी तो एक ही पुकारसे काम हो जायगा ।
(३)
भगवान्के बड़ी भारी पोल है, पता
नहीं है आपको ! अब याद कर लो । सच्चे हृदयसे पुकारो ‘हे
नाथ ! हे नाथ !!’ ‘ना..... थ’ ‒ ‘थ’ कहते
ही वे आ जायँगे !!
(४)
सुबह नींद खुलनेसे लेकर रात्रि नींद आनेतक चार-चार,
पाँच-पाँच मिनटके बाद कहते रहो कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’
। भगवान् सुलभतासे प्राप्त हो जायँगे । आप करके देखो । वृत्ति
अच्छी हो या बुरी, भगवान्को भूलो मत । आप ‘हे
मेरे नाथ ! हे मेरे प्रभो !’ पुकारो;
आपका कल्याण होगा....होगा.....होगा ! नहीं हो तो
मेरेको दण्ड देना !
(५)
आपको अबतक भगवान्का जैसा स्वरूप समझमें आया है,
उसको हर समय याद करो । भगवान् उसीको अपना स्वरूप मान लेते हैं,
यह उनका कायदा है । ‘हे मेरे नाथ ! हे मेरे प्रभो !’ पुकारो । भगवान् सबके लिये सुलभ
हैं । योग्य हों, अयोग्य हों, सदाचारी हों, दुराचारी हों, भले हों, बुरे हों, हरेक भाई-बहन भगवान्को अपना कह सकते हैं । कोई भगवान्को पुकारता है तो उसके अवगुणोंकी तरफ भगवान्की दृष्टि
जाती ही नहीं, वे तो केवल उसकी पुकारको देखते हैं ।
(६)
भगवान्के चरणोंकी शरण होकर केवल ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !!’ कह दो । पाँच मिनटसे ज्यादा देरी न
हो । अगर यह भी न कर सको तो दस मिनटमें कह दो । दस मिनटसे ज्यादा हो जाय तो एक समय
उपवास करो । नींद आ जाय तो जब जागो, तब कह दो कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’
। मन लगे चाहे न लगे,
कहना मत छोड़ो । करके देखो कि लाभ होता है कि नहीं होता ! भगवान्के सामने की हुई प्रार्थना निरर्थक नहीं जाती ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे
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