भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय
(गत ब्लॉगसे आगेका)
८. भगवान्को अपना मानना
(१)
आप भगवान्के हो जाओगे तो आपका सब काम भगवान्का
हो जायगा । आप भगवान्के,
घर भगवान्का, कुटुम्ब भगवान्का,
वस्तुएँ भगवान्की‒यह मान लो तो आपका सत्संग करना सफल हो गया
! सब कुछ भगवान्का मान लें‒इससे सरल उपाय और क्या बताऊँ ?
(२)
आप आज, अभी, इसी समय स्वीकार कर लें कि हम परमात्माके अंश हैं और परमात्मामें
ही रहते हैं, तो निहाल हो जायँगे । जड़ शरीर प्रकृतिका अंश है और प्रकृतिमें
ही रहता है । जड़ तो सपूत ही रहता है, आप ही कपूत हो जाते हैं । आपकी एकता परमात्माके साथ है,
शरीर-संसारके साथ नहीं । आप कितने ही पापी हों तो भी आप परमात्माके
साथ हैं । पाप-पुण्य आपका स्पर्श ही नहीं करते । आप परमात्माके हैं और परमात्मा आपके
हैं‒इसको आप भूल जायँ तो भी बात वैसी-की-वैसी ही है ।........मैं परमात्माका हूँ‒यह चिन्तन करनेकी बात नहीं है, प्रत्युत
माननेकी बात है । दो और दो चार
ही होते हैं, इसमें चिन्तन करनेकी क्या बात है
?
(३)
हम भगवान्के हैं और भगवान् हमारे हैं‒इतना स्वीकार
कर लो तो हमारा सत्संग सफल हो गया, और आपका काम भी सफल हो गया ।
(४)
भगवान्को अपना मान लो तो सब काम पूरा हो जायगा,
कोई काम किंचिन्मात्र भी बाकी नहीं रहेगा । कर्मयोग,
ज्ञानयोग, ध्यानयोग, भक्तियोग आदि कुछ बाकी नहीं रहेगा,
साधक पूर्ण हो जायगा;
कृतकृत्य, ज्ञातज्ञातव्य, प्राप्तप्राप्तव्य हो जायगा । अनन्त
ब्रह्माण्डोंका पालन करनेवाले भगवान् हमारे हैं‒यह मान लो तो अब क्या बाकी रहा, कैसे
बाकी रहा ?
(५)
भगवान् हमारे हैं, उनके
सिवाय कोई हमारा नहीं है‒ऐसा मान लो तो आप जीवन्मुक्त, तत्त्वज्ञ, महात्मा
हो जाओगे ।
(६)
हम भगवान्के हैं‒यह इतनी बढ़िया बात मिल गयी,
अब और क्या चाहिये
? अगर हम इस बातको न भूलें कि
हम भगवान्के हैं तो सब काम ठीक हो जायगा,
‘चेतन अमल सहज सुख रासी’ का अनुभव हो जायगा
। हमें साधन करना नहीं पड़ेगा, होने लग जायगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे
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