।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
       पौष शुक्ल दशमी, वि.सं.-२०७४, गुरुवार                 एकादशी-व्रत कल है
  भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय


भगवत्प्राप्तिके विविध सुगम उपाय

(गत ब्लॉगसे आगेका)

११. प्रकीर्ण

(१०)

साधकको ये चार बातें दृढ़तापूर्वक मान लेनी चाहिये‒

१)   परमात्मा यहाँ हैं ।

२)   परमात्मा अभी हैं ।

३)   परमात्मा अपनेमें हैं ।

४)   परमात्मा अपने हैं ।

परमात्मा सब जगह (सर्वव्यापी) होनेसे यहाँ भी हैं; सब समय (तीनों कालोंमें) होनेसे अभी भी हैं; सबमें होनेसे अपनेमें भी हैं; और सबके होनेसे अपने भी हैं ।

इस दृष्टिसे‒परमात्मा यहाँ होनेसे उनको प्राप्त करनेके लिये दूसरी जगह जानेकी आवश्यकता नहीं है; अभी होनेसे उनकी प्राप्तिके लिये भविष्यकी प्रतीक्षा करनेकी आवश्यकता नहीं है; अपनेमें होनेसे उन्हें बाहर ढूँढनेकी आवश्यकता नहीं है; और अपने होनेसे उनके सिवाय किसीको भी अपना माननेकी आवश्यकता नहीं है । अपने होनेसे वे स्वाभाविक ही अत्यन्त प्रिय लगेंगे ।

प्रत्येक साधकके लिये उपर्युक्त चारों बातें अत्यन्त महत्वपूर्ण और तत्काल लाभदायक हैं । साधकको ये चारों बातें दृढ़तासे मान लेनी चाहिये । समस्त साधनोंका यह सार साधन है । इसमें किसी योग्यता, अभ्यास, गुण आदिकी भी जरूरत नहीं है । ये बातें स्वतःसिद्ध और वास्तविक हैं, इसलिये इसको माननेके लिये सभी योग्य हैं, सभी पात्र हैं, सभी समर्थ हैं । शर्त यही है कि वे एकमात्र परमात्माको ही चाहते हों ।

खोया कहे सो बावरा,     पाया कहे सो कूर ।
पाया खोया कुछ नहीं, ज्यों-का-त्यों भरपूर ॥

दौड़ सके तो दौड़ ले,        जब लगि तेरी दौड़ ।
दौड़ थक्या धोखा मिट्या, वस्तु ठौड़-की-ठौड़ ॥

तेरा साहिब है घट मांही,         बाहर नैना क्यों खोले ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब पाया तृण-ओले ॥

    मोको कहाँ ढूँढ़े बंदामैं तो तेरे पास में ।
    ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में ।
    ना मन्दिर में ना मस्जिद में, ना काबे कैलास में ॥ १ ॥

    ना मैं जप में ना मैं तप में, ना मैं वरत उपास में ।
    ना मैं क्रिया कर्म में रहता, नहीं जोग संन्यास में ॥ २ ॥

    नहीं प्रान में नहीं पिंड में, ना ब्रह्माण्ड अकास में ।
    ना मैं त्रिकुटी भँवर गुफा में, सब साँसों की साँस में ॥ ३ ॥

    खोजी होय तुरत मिल जाऊँ, पलभर की तलास में ।
    कहत कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूँ बिस्वास में ॥ ४ ॥

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तकसे