।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.-२०७४, रविवार
             मकरसंक्रान्ति
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

अभी भगवान्को भक्ति देनी हैऐसा कई बातोंसे अनुमान होता है ! नहीं तो ‘अनुभव भगवद् भगति का भाग्यवान् को होय’ भक्तिका अनुभव हरेकको होता नहीं । भक्ति करते रहते हैं, पर पता नहीं लगता । परन्तु आजकल विशेषतासे पता लगता है ! अभी भगवान्का मन भक्तिका प्रचार करनेका है । इसलिये बहुत सुगमतासे तत्त्व प्राप्त हो सकता है । थोड़ा भजन करनेपर भी विलक्षणता, अलौकिकता, विचित्रता आती है । अतः आपलोग चेष्टा करो तो भगवान्के अच्छे भक्त बन सकते हो ।

शरणागतिमें अपने-आपको भगवान्के सर्वथा समर्पित कर दे कि भगवान् ही हैं, मैं हूँ ही नहीं । मैं-पन कल्पित है, सच्चा नहीं है । इसलिये अपनी सत्ता तो रहती है, पर मैं-पन मिट जाता है । मैं-पन मिटते ही भगवान्के साथ अभेद हो जाता है । अभेद होनेपर फिर भगवान्की तरफसे भेद होता है । वह अद्वैतभक्ति होती है ।

स्वयं भगवान् उस प्रेमरसके भूखे हैं । प्रेमसे भगवान् तृप्त हो जाते हैं । भगवान्को तृप्त करनेकी ही भक्तकी भावना होती है । भगवान् भी प्रतीक्षा करते हैं कि ऐसा भक्त मेरेको मिले ! भगवान्की भूख कैसी होती हैयह भगवान् जानें, उनके भक्त जानें !

सज्जनो ! आप तो रात-दिन भगवान्में लग जाओ । अपने भीतर उत्कट अभिलाषा जाग्रत् करो कि भगवान्में प्रेम हो जाय । उठते-बैठते, जागते-सोते एक भगवान् ही याद आयें । ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’यह बहुत बढ़िया मन्त्र है !

श्रोताअपने जिन संस्कारोंको हम बदलना चाहते हैं, उनको बदलनेका सबसे बढिया उपाय क्या है ?

स्वामीजीसबसे बढ़िया उपाय हैउद्देश्य बदल देना । विचार करें कि हमारे जीवनका उद्देश्य क्या है ? हमें अपने जीवनमें क्या करना है ? वास्तवमें हमारे जीवनका उद्देश्य परमात्माकी प्राप्ति करना होना चाहिये । इसके सिवाय किसीसे कोई मतलब नहीं । कोई राजी हो या नाराज हो, ठीक हो या बेठीक हो, नफा हो या नुकसान हो, लाभ हो या हानि हो, अनुकूलता मिले या प्रतिकूलता मिले, अपने उद्देश्यपर दृढ़ रहे । इसमें ढुलमुलपना न रहे, सन्देह न रहे । सुख पायें, चाहे दुःख पायें, हमें आध्यात्मिक उन्नति करना है ।

श्रोताहमारा यह वहम है कि हमलोग परिवारका पालन-पोषण करते हैं, तभी काम चलता है यह वहम कैसे निकले ?

स्वामीजीगीताप्रेसमें सेठजी (श्रीजयदयालजी गोयन्दका) सबसे मुख्य थे, पर उनके जानेपर भी गीताप्रेसका काम बढ़ा है, घटा नहीं है ! गीताप्रेसको सेठजीने ही बनाया था । सेठजीने जितना उद्योग किया है, वैसा उद्योग हर आदमी कर सकता नहीं ! ताकतसे बाहरकी बात है ! सेठजीके समान शक्तिशाली मेरेको कोई दीखा नहीं ! सेठजीने जितना काम किया है, उतना और किसीने किया हो तो बताओ ! वे भी चले गये ! भाईजी भी चले गये ! मुख्य-मुख्य आदमी चले गये, फिर भी काम चलता है ! काम घटा नहीं है, प्रत्युत बहुत ज्यादा मात्रामें बढ़ा है ! इतना उनके मौजूद रहते समय नहीं था । सत्संगमें पहलेसे अधिक उपस्थिति होती है, कागज पहलेसे ज्यादा छपता है, पुस्तकोंकी बिक्री भी ज्यादा होती है ! अतः मेरे रहनेसे काम चलता है, मैं नहीं रहूँगा तो काम नहीं होगायह कोरा वहम है । जो होना है, वह तो होगा । हमारे समान कई चले गये, फिर भी संसार चलता है ।


आप अपना एक उद्देश्य बना लो । फिर सब काम ठीक हो जायगा । घरवालोंकी चिन्ता मत करो कि कैसे काम चलेगा !

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे