(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक बात आपलोग ध्यान देकर सुनो । अभी हम मान लें कि जो
कुछ दीख रहा है,
वह साक्षात् परमात्मा है तो अभी प्राप्ति हो जायगी ! मनमें किंचिन्मात्र भी सन्देह नहीं हो । प्यास लगती है तो जलरूपसे भगवान् आते
हैं, भूख लगती है तो अन्नरूपसे भगवान् आते हैं, जाड़ा लगता है तो कपड़ारूपसे भगवान् आते हैं । आप जिस चीजकी आवश्यकता समझते हो,
उसका रूप धारण करके भगवान् आते हैं । कुछ भी
इच्छा नहीं करो तो साक्षात् भगवान् आते हैं ! क्योंकि है ही वही, और कोई है ही नहीं
!
सब जग ईस्वररूप है, भलो बुरो
नहिं कोय ।
जाकी जैसी भावना, तैसो ही फल होय ॥
श्रोता‒सब कुछ परमात्मा ही हैं‒यह बात समझमें नहीं आयी
!
स्वामीजी‒समझमें आये या न आये, सब कुछ परमात्मा ही
हैं । वास्तवमें यह बात समझके अन्तर्गत नहीं है, प्रत्युत समझ
इसके अन्तर्गत है । इसका अनुभव करनेवाले महात्माको भगवान्ने
अत्यन्त दुर्लभ बताया है‒‘वासुदेवः सर्वमिति
स महात्मा सुदुर्लभः’ (गीता ७ । १९)
। परन्तु भगवान्ने
अपनेको सुलभ बताया है‒‘तस्याहं सुलभः पार्थ’ (गीता ८ । १४) । भगवान् सुलभ हैं, पर महात्मा दुर्लभ है !
समझमें न आये तो भी मान लो कि वास्तवमें है ऐसा ही । कभी
भी यह बात नहीं होनी चाहिये कि यह हमारी कल्पना है, हमारी भावना है, हमारा विचार है, हमारी स्वीकृति है । हमारी स्वीकृति
हो चाहे न हो, हम समझें चाहे न समझें, हमारी
स्थिति हो चाहे न हो, बात तो ऐसी ही है ! बात यही सच्ची है ! फिर भगवान्की कृपासे स्वतः अनुभव हो जायगा ।
भगवान्की कृपा स्वतः-स्वाभाविक
होती है । आश्चर्य आयेगा ! मैं तो कोई पात्र भी नहीं,
मैंने प्रार्थना भी नहीं की, माँग भी नहीं की,
कुछ भी नहीं किया, आँख खुल गयी ! मेरेको कइयोंने पूछा, मैंने कहा कि मैं बता नहीं सकता कि कृपा कैसे हो ? कृपा होती है‒यह एकदम पक्की,
सच्ची बात है । कृपाके विषयमें मैं कई बातें कहता हूँ पर वास्तवमें भगवान्
जानें ! अपने-आप, जबर्दस्ती कृपा होती है ! भगवान्का स्वभाव है । वर्षा काँटोंके वृक्षोंपर भी बरसती
है और समुद्रपर भी बरसती है । मैंने समुद्रमें वर्षा बरसते हुए देखी है । इस तरह भगवान्की कृपा विचित्र है ! ‘हे नाथ ! हे नाथ !’ करते रहो । खट हो जायगा ! मोटरको चालू करते हैं तो बीस बार चाबी घुमाते हैं और इक्कीसवीं बार चाबी घुमाते
ही खट मोटर चालू हो जाती है ! कितनी बार चाबी घुमानेसे मोटर चालू
होगी, इसका पता नहीं । आप चाबी घुमाते जाओ, मोटर चलेगी जरूर ! मोटर खराब होनेपर नहीं भी चले,
पर यह (पुकार) कभी खराब नहीं
होती ! ‘रामजी से लगे रहो भाई तेरी बिगड़ी बात
बन जाई ।’
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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