।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  फाल्गुन अमावस्या, वि.सं.-२०७४, गुरुवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

मेरी प्रार्थना है कि आप हृदयसे भगवान्से प्रार्थना करो

हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं । मैं आपसे सुख नहीं चाहता । एक ही बात चाहता हूँ कि भीतरमें ऐसी लगन हो जाय, ऐसी चाहना हो जाय, ऐसी व्याकुलता हो जाय कि मैं आपके बिना रह न सकूँ । हे नाथ ! ऐसी कृपा करो कि आपको कभी भूलूँ नहीं । आपने बहुत कृपा की है, फिर भी मैं समझता नहीं !’

हे नाथ ! मेरी सांसारिक सुखकी, सांसारिक चीजोंकी चाहना भी हो जाय तो उसको आप पूरी मत करो । जिससे मेरा केवल आपके ही चिन्तनमें मन लग जाय, ऐसी कृपा करो । मैंने बहुत दुःख पा लिया, फिर भी चेत नहीं हो रहा है, होश नहीं आ रहा है, आपसे प्रार्थना करनेकी जोरदार मनमें नहीं आ रही है ! मैं हैरान हो गया हूँ ! अब ऐसी कृपा करो कि आपको भूलूँ नहीं ! आपके सिवाय मेरी और कौन सुनेगा ? किससे कहूँ ? कोई सुननेवाला नहीं ! मेरेपर कृपा करनेवाला कोई दीखता नहीं ! आप कृपा करो । ऐसी कृपा करो कि मैं आपको भूलूँ नहीं । आपने बहुत कृपा की है, पर मेरेको चेत नहीं हो रहा है । आप चेत कराओ । मैं माँग भी नहीं सकता; क्योंकि माँगनेकी भीतरमें जोरदार इच्छा ही नहीं होती ! मैं हैरान हो गया हूँ ! कहाँ जाऊँ ? किससे कहूँ ? कौन सुने ? सिवाय आपके कोई सुननेवाला नहीं है !

‘मेरी दशा ऐसी हो रही है कि हृदयमें प्रेम नहीं है, स्नेह नहीं है, आपकी तरफ आकर्षण नहीं है ! मेरा संसारके भोगोंमें आकर्षण होता है ! जो चीजें पतन करनेवाली हैं, उन चीजोंमें अच्छापन दीखता है ! क्या करूँ ? सिवाय आपके कोई कुछ नहीं कर सकता । हे नाथ, आप कृपा करो.....कृपा करो.....कृपा करो ! आपने बहुत कृपा की है, पर मेरेको होश नहीं हो रहा है ! हे नाथ ! हे कृपासिन्धो ! आपकी तरफ जैसी लगन होनी चाहिये, वैसी नहीं हो रही है ! मैं आपकी दृष्टिमें आनेलायक भी नहीं हूँ पर क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? आपके समान परम दयालु परम सुहद् कोई दीखता नहीं । फिर भी आपपर पूरा विश्वास, भरोसा नहीं होता है ! इस कमीको आप ही मिटाओ । मैं मिटा नहीं सकता । मेरे पास ऐसे शब्द नहीं हैं; क्योंकि ऐसे भाव नहीं हैं ! भावके बिना शब्द आते नहीं !


‘आपने अपनी तरफसे बहुत कृपा की है, फिर भी आपसे कृपा ही चाहता हूँ । क्या करूँ ? अक्ल नहीं है, समझ नहीं है ! याद नहीं रहता, भूल जाता हूँ ! हे कृपासिन्धो ! ऐसी कृपा करो कि आपको भूलूँ नहीं । मेरे भीतरमें ऐसी लगन नहीं पैदा होती ! क्या करूँ ? मैं कहनेलायक नहीं हूँ; परन्तु आपकी बात ऐसी है कि आपके यहाँ अयोग्य भी योग्य हो जाता है, अपात्र भी पात्र हो जाता है, पापी भी पवित्र हो जाता है ! आपकी प्रभुता अपार है, अपार है, अपार है ! कभी सन्तोंसे सुन लेता हूँ कभी चिन्तनमें बात आ जाती है तो उससे कुछ होश आता है, पर फिर भूल जाता हूँ ! हे नाथ, आप कृपा करो । आपने बहुत कृपा की है, बहुत अच्छा मौका दिया है, पर मैं चेत नहीं कर पाया ! मुझे चेत करानेवाला आपके सिवाय और कौन है ? एक आपके सिवाय कोई सुननेवाला नहीं है । मेरे पास शब्द नहीं है ! प्रार्थना करनेका बल नहीं है ! मैं अपनेको सर्वथा अयोग्य समझता हूँ । जो आपके प्यारे भक्त हुए हैं, उनकी प्रार्थनाको आपने सुना है । पर मैं वैसा हूँ नहीं ! मेरेको ठीक दीखता है कि मैं सच्चे हृदयसे चाहता नहीं हूँ । आप सर्वसमर्थ हो, सब कुछ कर सकते हो । मेरे-जैसेको भी आप अपनाते हो, कृपा करते हो, यह मैं जानता हूँ । कई बातें याद आती हैं, पर फिर भूल जाता हूँ ! मैं चाहता हूँ कि आपके दरबारमें पड़ा रहूँ, आपको याद करता रहूँ, आपकी तरफ ही मेरी दृष्टि रहे ।’

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे