।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  फाल्गुन शुक्ल तृतीया, वि.सं.-२०७४, रविवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

          संसारमें भगवान् इतने दुर्लभ नहीं हैं । वास्तवमें साधन बतानेवाला दुर्लभ है ! एक श्लोक आता है‒

                   अमन्त्रमक्षरं नास्ति  नास्ति मूलमनौषधम् ।
अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः ॥

‘संसारमें ऐसा कोई अक्षर नहीं है, जो मन्त्र न हो; ऐसी कोई जड़ी-बूटी नहीं है, जो ओषधि न हो; और ऐसा कोई मनुष्य नहीं है, जो योग्य न हो; परन्तु इनका संयोजक दुर्लभ है ।’

तात्पर्य है कि इस अक्षरका ऐसे उच्चारण किया जाय तो यह अमुक काम करेगा, इस जड़ी-बूटीको इस प्रकार दिया जाय तो अमुक रोग दूर हो जायगा, यह मनुष्य इस प्रकार करे तो बहुत जल्दी इसकी उन्नति हो जायगीइस प्रकार बतानेवाले पुरुष संसारमें दुर्लभ हैं ।

वास्तवमें ठीक तरहसे साधन बतानेवाला दुर्लभ है, इसलिये देरी हो रही है । साधन बतानेवाला अनुभवी हो और जाननेकी उत्कट इच्छा हो तो बहुत जल्दी काम होता है । मेहनत गुरु करता है, सिद्धि चेलेकी होती है ! ठीक बतानेवाला वही होता है, जिसने अनुभव किया है । अनुभव किये बिना बतानेवाला ठीक नहीं होता । बिना अनुभवके वह क्या बताये ? जिसने ठीक तरहसे अनुभव कर लिया है, वह बतायेगा तो पट काम हो जायगा !

कई लोग कहते हैं कि इस जन्ममें तो हमारा कल्याण नहीं होगा ! यह बड़ी भारी गलती है ! परमात्माकी प्राप्तिमें भविष्य नहीं है; परन्तु कब ? जब जाननेवाला (अनुभवी) मिल जाय और हमारेमें जाननेकी उत्कण्ठा हो । जिस विषयको आदमी जानता नहीं, उस विषयमें वह अन्धा होता है । अन्धा आदमी दूसरेको मार्ग कैसे बताये ? आजकल ऐसे ही आदमी मिलते हैं ! उनमें गुरु बननेका शौक तो है, पर गुरु बननेकी योग्यता नहीं है । वे शिष्यकी पीड़ाको जानते ही नहीं ! श्ष्यिका हित किस बातमें हैइस बातको वे जानते ही नहीं ! शंकराचार्यजी कहते हैं‘को वा गुरुर्यो हि हितोपदेष्टा’ (प्रश्नोत्तरी ७) ‘गुरु कौन है ? जो केवल हितका ही उपदेश करनेवाला है ।’ हितका उपदेष्टा होनेपर भी अनुभवी होनेकी आवश्यकता है । जानकार अनुभवी बताता है तो काम पट हो जाता है !

वास्तवमें काम बना-बनाया है ! आध्यात्मिक बात आपकी अपनी बात है । कारण कि आप ईश्वरके अंश हैं‒‘ईस्वर अंस जीव अबिनासी’ । ईश्वरका अंश होनेसे ईश्वर हमारे घरके हैं ! माता-पिता जितने घरके होते हैं, इतने घरका कोई नहीं होता । पर यह बात लोग समझते नहीं ! इसलिये मैं आप सबसे प्रार्थना करता हूँ कि कृपा करके भगवत्प्राप्तिको कठिन मत मानो । एकदम सच्ची बात है ! क्योंकि यह तो अपने घरकी बात है । अपने माँ-बापकी बात बतानेवाला कोई मिल जाय तो कठिनता किस बातकी ? ऐसे ही कोई बतानेवाला मिल जाता है तो परमात्मप्राप्ति कठिन नहीं रहती । देरी तभी लगती है, जब हमारी जोरदार इच्छा नहीं है अथवा गुरु समर्थ नहीं है ।

पारस केरा गुण  किसा,  पलट्या  नहीं  लोहा ।
कै तो निज पारस नहीं, कै बीच रहा बिछोहा ॥

पारस भी असली हो, लोहा भी असली हो और बीचमें कोई आड़ न हो तो तत्काल काम होता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे