(गत ब्लॉगसे आगेका)
जीव ईश्वरका अंश है, ईश्वरका खास बेटा है । अपने पिताकी,
माँकी गोदीमें जानेमें क्या देरी लगे ? भगवान्
जीवमात्रके परमपिता हैं । उनकी प्राप्तिमें कठिनता कैसी ? अपनी
इच्छा कम हो और बतानेवाला न मिले, तब कठिनता होती है । ठीक बतानेवाला
हो तो जल्दी प्राप्ति होती है । जल्दी प्राप्ति क्यों होती है ? इसमें एक कारण है कि यह परमात्माका अंश है, और दूसरा
कारण है कि परमात्मा सब जगह परिपूर्ण हैं । इसलिये वे सबसे नजदीक हैं ।
तेरा साहिब है
घट मांही, बाहर नैना क्यों
खोले ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब पाया
तृण-ओले ॥
जो सब जगह मौजूद होता है, उसकी प्राप्तिके लिये
कहीं जाना नहीं पड़ता । हम जहाँ हैं, वहीं परमात्मा मौजूद हैं
। अतः परमात्मा दूर नहीं हैं, प्रत्युत उनकी तरफ वृत्ति नहीं
है । जिन लोगोंको देरी लगती है, उनको ठीक बतानेवाले मिले नहीं
। आजकल कथा सुनानेवाले तो बहुत हैं, पर ठीक तत्त्वको जाननेवाले बहुत कम हैं । जो चीज
अपनी नहीं है, मिलने और बिछुड़नेवाली है, उस (धन, जमीन, मकान आदि )-की प्राप्ति भी लोग कर लेते हैं,
फिर जो वास्तवमें अपनी है, उसको प्राप्त करनेमें
देरी क्यों ?
भगवान् मिलने और बिछुड़नेवाले नहीं हैं । वे मिले हुए हैं
और बिछुड़ते हैं ही नहीं ! वे सदा साथमें रहनेवाले हैं । वे आपसे अलग जा सकते ही नहीं !
उनमें आपसे अलग होनेकी सामर्थ्य नहीं है ! जरा
सोचो, जो सर्वव्यापक है, वह आपसे अलग कैसे
हो जाय ? प्रहादजीको पक्का विश्वास था कि भगवान् सब जगह हैं तो
उनके लिये भगवान् पत्थरमेंसे प्रकट हो गये !
संसार एक क्षण भी टिकता नहीं और परमात्मा कभी अलग होते
ही नहीं । तो फिर परमात्मा मिलते क्यों नहीं ? क्योंकि हम दूसरी चीजोंकी इच्छा करते
हैं, परमात्माकी नहीं । आप कभी कोई इच्छा मत करो, इच्छामात्रका त्याग कर दो तो परमात्मा चट मिल जायँगे ! संसारकी इच्छा ही परमात्माकी प्राप्तिमें देरी करानेवाली
है । संसारकी इच्छा परमात्मप्राप्तिमे आड़ जरूर लगा देगी,
फायदा कुछ नहीं ! संसार खुद तो ठहरता नहीं और भगवान्की प्राप्ति होने नहीं देता !
शरीर किसीके साथ रहेगा ही नहीं, फिर भी सब इच्छा करते
हैं कि मेरा शरीर बना रहे, रोग मिट जाय और शरीर रह जाय । आप कितनी
ही इच्छा कर लो, शरीर रहेगा ही नहीं । जो चीज रहेगी ही नहीं,
उसकी इच्छा छोड़नेमें क्या बाधा लगती है ? उसकी इच्छा करना क्या समझदारी है ? चाहे तो शरीरको रख
लो, चाहे उसके रहनेकी इच्छा छोड़ दो । रख तो सकते नहीं,
तो इच्छा छोड़ दो ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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