।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  फाल्गुन शुक्ल पंचमी, वि.सं.-२०७४, मंगलवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

जीव ईश्वरका अंश है, ईश्वरका खास बेटा है । अपने पिताकी, माँकी गोदीमें जानेमें क्या देरी लगे ? भगवान् जीवमात्रके परमपिता हैं । उनकी प्राप्तिमें कठिनता कैसी ? अपनी इच्छा कम हो और बतानेवाला न मिले, तब कठिनता होती है । ठीक बतानेवाला हो तो जल्दी प्राप्ति होती है । जल्दी प्राप्ति क्यों होती है ? इसमें एक कारण है कि यह परमात्माका अंश है, और दूसरा कारण है कि परमात्मा सब जगह परिपूर्ण हैं । इसलिये वे सबसे नजदीक हैं ।

तेरा  साहिब  है  घट  मांही,  बाहर  नैना  क्यों  खोले ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब पाया तृण-ओले ॥

जो सब जगह मौजूद होता है, उसकी प्राप्तिके लिये कहीं जाना नहीं पड़ता । हम जहाँ हैं, वहीं परमात्मा मौजूद हैं । अतः परमात्मा दूर नहीं हैं, प्रत्युत उनकी तरफ वृत्ति नहीं है । जिन लोगोंको देरी लगती है, उनको ठीक बतानेवाले मिले नहीं । आजकल कथा सुनानेवाले तो बहुत हैं, पर ठीक तत्त्वको जाननेवाले बहुत कम हैं । जो चीज अपनी नहीं है, मिलने और बिछुड़नेवाली है, उस (धन, जमीन, मकान आदि )-की प्राप्ति भी लोग कर लेते हैं, फिर जो वास्तवमें अपनी है, उसको प्राप्त करनेमें देरी क्यों ?

भगवान् मिलने और बिछुड़नेवाले नहीं हैं । वे मिले हुए हैं और बिछुड़ते हैं ही नहीं ! वे सदा साथमें रहनेवाले हैं । वे आपसे अलग जा सकते ही नहीं ! उनमें आपसे अलग होनेकी सामर्थ्य नहीं है ! जरा सोचो, जो सर्वव्यापक है, वह आपसे अलग कैसे हो जाय ? प्रहादजीको पक्का विश्वास था कि भगवान् सब जगह हैं तो उनके लिये भगवान् पत्थरमेंसे प्रकट हो गये !

संसार एक क्षण भी टिकता नहीं और परमात्मा कभी अलग होते ही नहीं । तो फिर परमात्मा मिलते क्यों नहीं ? क्योंकि हम दूसरी चीजोंकी इच्छा करते हैं, परमात्माकी नहीं । आप कभी कोई इच्छा मत करो, इच्छामात्रका त्याग कर दो तो परमात्मा चट मिल जायँगे ! संसारकी इच्छा ही परमात्माकी प्राप्तिमें देरी करानेवाली है । संसारकी इच्छा परमात्मप्राप्तिमे आड़ जरूर लगा देगी, फायदा कुछ नहीं ! संसार खुद तो ठहरता नहीं और भगवान्की प्राप्ति होने नहीं देता !


शरीर किसीके साथ रहेगा ही नहीं, फिर भी सब इच्छा करते हैं कि मेरा शरीर बना रहे, रोग मिट जाय और शरीर रह जाय । आप कितनी ही इच्छा कर लो, शरीर रहेगा ही नहीं । जो चीज रहेगी ही नहीं, उसकी इच्छा छोड़नेमें क्या बाधा लगती है ? उसकी इच्छा करना क्या समझदारी है ? चाहे तो शरीरको रख लो, चाहे उसके रहनेकी इच्छा छोड़ दो । रख तो सकते नहीं, तो इच्छा छोड़ दो ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे